गुना। समर्पण का अर्थ है अपने आपको किसी के प्रति समर्पित कर देना। समर्पित होने का तात्पर्य यही है कि किसी का हो जाना। जब हम किसी के प्रति समर्पित होते हैं तब हमारे पास अपना कुछ भी नहीं बचता। जो कुछ हमारा था वह उसका हो गया जिसके प्रति हम समर्पित हुए। एक संत के उद्गार है 'मेरा मुझमें कुछ नहीं जो कुछ है सो तेरा, तेरा तुझ को सौंप के क्या लागे है मेराÓ। मेरा तो कुछ था ही नहीं, जो कुछ था वह तो तेरा ही था। तेरी वस्तु तुझे सौंपने में मेरी क्या विशेषता है। इसी भाव से हम अपने आराध्य सद्गुरु के प्रति अपने आप को समर्पण कर दें तो सहज ही संसार की अन्य बाधाओं से मुक्त हो जाएंगे।
उक्त उद्गार दलवी कॉलोनी स्थित निरंकारी सत्संग भवन में आयोजित क्षमा याचना दिवस के अवसर पर भोपाल संगत से आए प्रचारक यशवंत जोशी ने संबोधित करते हुए व्यक्त किए। इस मौके पर उन्होंने बताया कि सदगुरू के दर पर सत्संग या संत समागम में सेवादल मर्यादा पूर्वक सेवा करते हैं। यदि जाने अनजाने में कोई गलती हो जाती है तब क्षमा प्रार्थना के लिए यह कार्यक्रम क्षमा याचना दिवस के रूप में मनाते हैं। इस दौरान सेवादल के भाई-बहनों द्वारा सामूहिक गीत 'न हिन्दू न सिख-ईसाई न मुसलमान, मानवता है धर्म हमारा हम केवल इंसान हैÓ की प्रस्तुति दी। इस मौके पर प्रचारक श्री जोशी ने कहा कि भौतिक जगत में भी हम देखते हैं कि पारिवारिक रिश्तों के समुचित निर्वहन में भी हमें अपने व्यक्तिगत सुख-सुविधाओं का त्याग करना पड़ता है। यद्यपि अपन संतानों अथवा भाई-बंधुओं के प्रति निभाई जाने वाली जिम्मेदारियों में हमें ऐसा लगता ही नहीं कि हम कुछ विशेष कर रहे हैं। मां, बच्चों के प्रति सहज ही अपने कर्तव्य-कर्म का निर्वाह करती है। इसी तरह समाज में भी देखते हैं जां एक-दूसरे के प्रति आदर्श भावों को सहज में ही निभाया जाता है। उन्होंने कहा कि प्रेम के अनेकों उत्कृष्ट उदाहरण मानव में ही नहीं मानव से अलग प्राणियों में भी देखने को मिल जाते हैं। जहां वे एक-दूसरे के लिए अपनी जान तक न्यौछावर कर देेते हैं। यह सब समर्पण भाव के कारण ही संभव हो पाता है। इस अवसर पर निरंकारी सेवादल के इंचार्ज रवि कश्यप, वीनू मदान, गुना संयोजक नरेश उप्पल, ज्ञान प्रचारक रविन्द्र चौबे आदि उपस्थित थे।